Thursday, December 17, 2015

Few shayaris

Today I came across a post on Facebook. And all the shayaris it had, touched my heart. And I couldn't resist sharing them. I don't know who the shayar is (probably he is Piyush Mishra) 

सोचता हू कि धोखे से जहर दे दु | 
सभी ख्वाहीशोन्को दावतपे बुला के || 

रातोंको चलती रहति ही है mobile पे उंगलिया | 
सीनेपे किताब रखके सोये काफी वक़्त हो गया || 

सुकून मिलता है दो लफ्ज़ कागज़ पे उतार कर |
चीख भी लेता हु और आवाज भी नहीं आती || 

हर इंसान बिकता है इस दुनिया मे |
कितना महंगा या सस्ता ये उसकी मजबूरियाँ तय करती है  || 

आज मैंने फिर से जज़बात भेजें | 
तुमने फिर अल्फ़ाज ही समझें  || 

ख्वाहिशोंको जेब में रखकर निकला कीजिये जनाब | 
खर्चा बहोत होता है, मन्ज़िलोंको पाने में  || 

ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अज़ीब है | 
शामे कटती नहीं और साल गुजरते जाते है ||  

ना जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला, वो लम्हे | 
जो छुपा कर रखें थे जीनेके लिए  ||

ये उम्र कुछ कहा  मैंने, शायद तूने सुना नहीं | 
तू छीन सकती है बचपन मेरा, पर बचपना नहीं  || 

क्या फायदा आधी रात को उठनेसे | 
जब सपने भी wrong number जैसे हो || 

वो काम भला क्या काम हुआ जो मज़ा न दे whiskey का | 
और वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जिसमे ना मौका सिसकी का | 

कितने दिल थे जो गये पथ्थर | 
कितने पथ्थर थे जो सनम ठहरे || 

इक इतवार ही है, जो रिश्तोंको संभालता है | 
बाकी दिन किश्तोंको संभालने में खर्च हो जाते है || 

अजीब दस्तूर है मोहब्बत का |  
रूठ कोई जाता है, टूट कोई जाता है  || 

कुर्सी है कोई जनाज़ा तो नहीं | 
कुछ कर  नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते || 

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