Today I came across a post on Facebook. And all the shayaris it had, touched my heart. And I couldn't resist sharing them. I don't know who the shayar is (probably he is Piyush Mishra)
सोचता हू कि धोखे से जहर दे दु |
सभी ख्वाहीशोन्को दावतपे बुला के ||
रातोंको चलती रहति ही है mobile पे उंगलिया |
सीनेपे किताब रखके सोये काफी वक़्त हो गया ||
सुकून मिलता है दो लफ्ज़ कागज़ पे उतार कर |
चीख भी लेता हु और आवाज भी नहीं आती ||
हर इंसान बिकता है इस दुनिया मे |
कितना महंगा या सस्ता ये उसकी मजबूरियाँ तय करती है ||
आज मैंने फिर से जज़बात भेजें |
तुमने फिर अल्फ़ाज ही समझें ||
ख्वाहिशोंको जेब में रखकर निकला कीजिये जनाब |
खर्चा बहोत होता है, मन्ज़िलोंको पाने में ||
ज़िन्दगी का फलसफा भी कितना अज़ीब है |
शामे कटती नहीं और साल गुजरते जाते है ||
ना जाने कब खर्च हो गये, पता ही न चला, वो लम्हे |
जो छुपा कर रखें थे जीनेके लिए ||
ये उम्र कुछ कहा मैंने, शायद तूने सुना नहीं |
तू छीन सकती है बचपन मेरा, पर बचपना नहीं ||
क्या फायदा आधी रात को उठनेसे |
जब सपने भी wrong number जैसे हो ||
वो काम भला क्या काम हुआ जो मज़ा न दे whiskey का |
और वो इश्क़ भला क्या इश्क़ हुआ जिसमे ना मौका सिसकी का |
कितने दिल थे जो गये पथ्थर |
कितने पथ्थर थे जो सनम ठहरे ||
इक इतवार ही है, जो रिश्तोंको संभालता है |
बाकी दिन किश्तोंको संभालने में खर्च हो जाते है ||
अजीब दस्तूर है मोहब्बत का |
रूठ कोई जाता है, टूट कोई जाता है ||
कुर्सी है कोई जनाज़ा तो नहीं |
कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते ||
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